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नाटक चालू आहे                           - आलोक वर्मा चुनाव आयोग द्वारा पांच राज्यों के लिए विधानसभा चुनावों की तिथि घोषित कर दिए जाने के बाद राजनीतिक माहौल गरमा गया है। पिछले कुछ दिनों से उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ दल समाजवादी पार्टी में पारिवारिक कलह रूपी नौटंकी लगातार जारी है। मीडिया को यादव परिवार की नौटंकी रोजाना कुछ न कुछ मसाला दे जाती रही है। लेकिन इसी बीच पंजाब में  च‌ुनाव प्रचार जोर पकड़ गया। पहले मंगलवार को दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के चुनावी भाषण पर तहलका मचा। मीडिया ने संसेशनल न्यूज के चक्कर में मनीष के बयान में थोड़ा से हेरफेर किया तो वह खबर हेडिंग बन गई। हुआ यूं कि सिसोदिया ने मोहाली की एक चुनावी सभा में कहा कि आप लोग यह मानकर आप को वोट  दीजिए कि केजरीवाल मुख्यमंत्री हैं। वह आपके सारे काम करवाएंगे। लेकिन पत्रकारों ने सिसोदिया के बयान का दूसरा हिस्सा उड़ा दिया और यह चला दिया कि पंजाब के सीएम केजरीवाल होंगे। फिर क्या था , दनादन सभी दलों के नेताओं के बयान आने शुरू हो गए। अपने अपने तरीके से उसकी व्याख्या होने लगी। अकाली दल ने तो यहां तक कह दिया कि
विमुद्रीकरण और उसके प्रभाव +संतोष वर्मा   पोस्ट-डाक्टोरल फेलो, कासल यूनिवर्सिटी, जर्मनी     पिछली 8 नवम्बर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम अपने संबोधन के दौरान यह घोषणा की कि हाई वैल्यू करेंसी नोट (500 और 1000 के नोट) 9 नवम्बर 2016 से चलन से बाहर हो जायेंगे. प्रधानमंत्री के संबोधन में यह भी कहा गया कि 30 दिसम्बर 2016 तक इन नोटों को धारण करने वाले लोग बैंकों में जमा कर सकते हैं. सरकार द्वारा बताये गए विमुद्रीकरण (नोटबंदी) के प्रमुख उद्देश्यों में यह कहा गया कि इससे कालेधन को पूर्णरूप से समाप्त किया जा सकेगा, चलन में नकली मुद्रा को रोका जा सकेगा, भ्रष्ट्राचार ख़त्म होगा और इसी तरह अधिक मूल्य के नोटों पर पाबन्दी से देश में पनप रहे आतंकवाद, नक्सलवाद, हथियारों के गैर कानूनी व्यापर और ड्रग्स की समस्या से छुटकारा मिल सकेगा. यहाँ हम यह बताते चलें कि यदि हम विमुद्रीकरण से कुछ दिन पहले (4 नवम्बर 2016) आरबीआई द्वारा जारी वीकली स्टैटिस्टिकल सप्लीमेंट पर नजर दौडाएं तो पता चलता है कि चलन में कुल मुद्रा (जनता के पास कुल नकद और बैंकों के सेविंग अकाउंट में कुल जमा धन) का मूल्
ओम पुरी को अंतिम सलाम +                                                                                                            - आलोक वर्मा                                   ओम पुरी नहीं रहे। सुबह सुबह टीवी पर जब यह खबर सुनी तो लगा जैसे कोई अपना बिछुड़ गया हो। ओम पुरी मेरे पसंदीदा एक्टरों में से एक हैं या यू कहें कि सबसे पसंदीदा एक्टर रहे हैं। जिनकी फिल्मों क ो देखकर फिल्मों के प्रति जो थोड़ी बहुत समझ बनी उनमें ओम पुरी की ‌‌फिल्में ‌शामिल थीं। मेरी उनसे एक छोटी सी मुलाकात हुुई थी। भीष्म साहनी के उपन्यास तमस पर गोबिंद निहलानी ने उसी नाम (तमस- 1988) में फिल्म बनाई। इस फिल्म से जुड़े सभी लोगों को पश्चिम बंगाल सरकार ने स?मानित किया था। उसी समारोह में कलकत्ता (अब कोलकाता) में मेरी भी ओम पुरी और भीष्म साहनी से छोटी सी मुलाकात हुई थी। ओम पुरी ने जो अपनापन दिखाते हुए मुझसे बातचीत की तो ऐसा लगा ही नहीं कि मैं किसी बड़े कलाकार से बात कर रहा हूं। उन्होंने पढ़ाई से लेकर सिनेमा तक की रुचि के बारे में पूछा था। उनकी यह कहा आज भी जेहन में है कि जो फिल्म जीवन को कोई दृष्टिकोण