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मानव संबंधों की कहानियां

आलोक वर्मा यह भूमंडलीकरण का युग है। इसके प्रवेश के साथ-साथ अभूतपूर्व सांस्कृतिक संकट आया है। विज्ञान के विस्फोट तथा भाषा के अंतःस्फुट के साथ-साथ जहां एक ओर तकनीकी प्रगति शिखर की तरफ बढ़ रही है, वहीं सामाजिक और सांस्कृतिक संकट की तीव्रता भी महसूस की जा रही है। आज लेखक के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह इतिहास के अंत और विचारधारा के अंत के बवंडर में इतिहास को या समाज की भूमिका को कैसे रचनात्मक रूप दे। यही नहीं रचनात्मकता के सामने सबसे बड़ा संकट यह है कि वह भाषा संबंधी, ज्ञान मीमांसा संबंधी दैनंदिन आचरण को कैसे रूपायित करे। ‘ क्रमशः ‘ कहानी संग्रह की लेखिका ने इस उहापोह में जो कौशल अपनाया है, वह ‘ नई कहानी ‘ के शिल्प का अतिक्रमण नहीं कर पाया है। लेकिन नई कहानी आंदोलन से इस मायने में भिन्न है कि इसमें संवेदनशीलता का, अनुभूति की तीव्रता का जो रचाव है, वह नई कहानी की रोमानी भावुकता से अछूता है। उदाहरण के लिए इन कहानियों में राजेंद्र यादव की कहानियों जैसा लिजलिजापन नहीं है और न तो निर्मल वर्मा जैसा अतीत के प्रति आत्म समर्पण है। यद्यपि ये कहानियां रोजमर्रा के आचरण, विचार तथा

क्यों आत्महत्या करते हैं सुरक्षा कर्मी !

आलोक वर्मा     भारतीय जीवन दर्शन में आत्महत्या को जिंदगी से पलायन माना गया है। शायद यही कारण है कि आत्महत्या के मामले अक्सर सहानुभूति का कारण नहीं बनते। युवाओं की अकाल मौत कभी-कभी अनजान लोगों को भी द्रवित कर देती है। जिंदगी से संघर्ष करते-करते कोई चला जाए तो सहज ही उसके लिए दुख होता है। लेकिन आत्महत्या करने वाले को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता। माल्ट्स बर्गर के अनुसार- ‘ यह पता लगाना चाहिए कि कोई व्यक्ति किस लिए जीता है। अधिकांश व्यक्ति सभी तरह की बातों के   लिए जीते हैं। यदि जीवन में उन्हें कोई एक चीज नहीं मिल पाती तो वे कोई और वस्तु ले लेते हैं। किंतु आत्महत्या की प्रवृत्ति वाले मनुष्यों में अपने आंतरिक साधनों के बल पर दुनिया में रहने की क्षमता नहीं होती। ‘ आत्महत्या कायरता है, जीवन से, जिम्मेदारियों से पलायन है। यह जानते हुए भी आत्मघात की प्रवृत्ति बढ़ी है और न सिर्फ किसानों, मजदूरों और अशिक्षितों में बढ़ी है बल्कि पढ़े लिखे वर्ग और मुश्किलों और कठिनाइयों के झंझावातों का सामना करने वाले जवानों में आत्महत्या की घटनाएं बढ़ी हैं। पिछले दिनों दिल्ली में राष्ट्रीय सुरक्षा ग