विमुद्रीकरण और उसके प्रभाव
पोस्ट-डाक्टोरल फेलो, कासल यूनिवर्सिटी, जर्मनी

आइये, अब हम काला धन क्या होता है, इसके सन्दर्भ में कुछ बातें समझ लें. अक्सर हम कई शब्दों को एक ही तरह से प्रयोग में लेते हैं हालाँकि उनके अर्थ में कुछ मूल अंतर होते हैं ; जैसे, काली मुद्रा (ब्लैक करेंसी), काला धन (ब्लैक वेल्थ) और काली अर्थव्यवस्था (ब्लैक इकॉनमी) को अक्सर लोग समानार्थी समझ लेते हैं पर इन शब्दों में कुछ खास अंतर है. इन तीनों शब्दावलियों में सिर्फ एक समानता है, वह ये कि चाहे काली मुद्रा हो या धन या इन सब से निर्मित काली अर्थव्यवस्था का साम्राज्य, ये सब बिना टैक्स भरे इकठ्ठा किये जाते हैं. काले धन का वह भाग जो नकद (कैश) के रूप में संचित हो सिर्फ उसे ही काली मुद्रा कहते हैं. काली मुद्रा काले धन का एक बहुत छोटा हिस्सा है जिसे अर्थशास्त्री एक से तीन प्रतिशत बीच आंकते हैं. काले धन के पैदा होने के कई और स्वरुप हैं जैसे कोई भी बिज़नेस जो टैक्स बचाने के लिए कम या अधिक मूल्य के बिलिंग करते हों, रियल एस्टेट में टैक्स से बचने के लिए सिर्फ चेक या ड्राफ्ट के भुगतान को दिखाना और नकद भुगतान को न दिखाना, नकली दवा बनाने और बेचने का एक बड़ा कारोबार देश में है जो काले धन को जन्म दे रहा है, कैपिटेशन फी के रूप में तमाम तकनीकी और प्राइवेट शैक्षणिक संस्थानों में भारी-भरकम रकम वसूली जाती है जो मूलतः काला धन ही है. इसी तरह बहुमूल्य धातुओं में भी लोग काला धन संचित करते हैं और हथियारों का गैरकानूनी व्यापार भी काले धन को जन्म देता है. इसके अलावां भी बहुत से आर्थिक लेन-देन ऐसे हैं जो काले धन को बढ़ावा देते हैं. एक और बात जो इस सन्दर्भ में जानना महत्वपूर्ण है वह यह कि काली मुद्रा अर्थव्यवस्था में हमेशा चलन में रहती है अर्थात काली मुद्रा एक फ्लो है, जबकि काला धन संचित या भंडार (स्टॉक) के रूप में रहता है.
आइये, अब इस नोटबंदी को उपर्युक्त सैद्धांतिक नजरिये से देखते हैं. भारत सरकार के राजस्व विभाग के आंकड़ों के अनुसार पिछले चार वर्षों (2011-15) में कुल संचित काले धन का 5.6 से 7.5 प्रतिशत जब्त किया गया है (याद रहे संपत्ति और नकद मुद्रा में फर्क होता है) अर्थात यदि हम कुल जब्त की गई काली संपत्ति में नकद मुद्रा का अनुमान लगायें तो यह कुल जब्त की गई संपत्ति का मात्र एक से तीन प्रतिशत ही होगा. इसी तरह नकली मुद्रा (काउंटरफीट करेंसी) का सरकारी अनुमान कुछ इस तरह है: सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामे के अनुसार कुल नकली नोट का मूल्य 400 करोड़ रुपये है अर्थात कुल चलन में मुद्रा का मात्र 0.028 प्रतिशत.
ऊपर दिए गए आंकड़े ये दिखाते हैं कि काली मुद्रा और नकली मुद्रा दोनों काले धन के स्टॉक का बहुत ही छोटा हिस्सा है, और नोटबंदी जिसके अंतर्गत सरकार ने कुल चलन में मुद्रा का 86 प्रतिशत हिस्सा (जो 500 और 1000 के नोटों में था) एकाएक चलन से बाहर कर दिया, से सिर्फ काले धन का नाममात्र हिस्सा जो नकद के रूप में है, सिर्फ उसी को संभवतः चलन से बाहर किया जा सकेगा. पर सरकार का यह कहना कि इससे काले धन से मुक्ति मिल जायेगी सही नहीं माना जा सकता. इसका कारण यह है कि काली मुद्रा एक फ्लो है और जब तक इस फ्लो के उत्पन्न होने के श्रोतों पर रोक नहीं लगेगी काली मुद्रा खुद-ब-खुद चलन में आती रहेगी और काले धन का निर्माण करती रहेगी.
सरकार के काले धन पर विराम लगाने के परिप्रेक्ष में चलाये गए नोटबंदी प्रोग्राम की तमाम अर्थशास्त्रियों और राजनीतिक पार्टियों ने सरकार के इस कदम और उसकी मंशा पर सवाल उठाये हैं. हालाँकि, किसी भी पुराने नोट को वापस लेना और नए नोट को चलन में डालना आरबीआई और सरकार के अधिकार के अंतर्गत आता है, पर बिना कोई मैकेनिज्म प्रदान किये एकाएक 86 प्रतिशत मूल्य के नोटों को चलन से बाहर कर दिए जाने से आम जनता के दैनिक आर्थिक लेन-देन और लघु आर्थिक क्रियाओं को लगभग ठप्प सा कर गया. इसी तरह पिछले 8 हफ़्तों में आरबीआई ने नोटबंदी के संदर्भ में 50 से भी अधिक सर्कुलर जारी किए हैं जो खुद यह दर्शाता है कि नोटबंदी का यह फैसला जल्दबाजी और बिना तयारी किये लिया गया था. नोटबंदी दे सन्दर्भ में खुद प्रधनमंत्री नरेन्द्र मोदी और वित्त मंत्रालय के बदलते बयान भी इस पूरे फैसले पर सवाल उठाते हैं. पहले सरकार की तरफ से यह कहा गया कि पुराने नोटों के बदल जाने से काले धन और भ्रष्ट्राचार पर रोक लगेगी, कुछ दिनों पश्चात् यह कहा गया कि सरकार देश को कैशलेस अर्थव्यवस्था की तरफ ले जाना चाहती है जिसके अंतर्गत सरकार ऑनलाइन पेमेंट को बढ़ावा देगी और इसके लिए बाकायदा निति आयोग लाटरी सिस्टम के तहत ऑनलाइन पेमेंट करने वाले लोगों को इनाम भी देगा. ताजातरीन सरकारी बयान यह कहता है कि नोटबंदी का प्रावधान लोगों में आर्थिक गतिविधियों के तहत व्यवहारात्मक परिवर्तन लाने के लिए किया गया है. सरकार और आरबीआई के इन बदलते बयानों और नीतियों से नोटबंदी के असल मकसद कि काला धन पर विराम लगेगा पर प्रश्नचिन्ह लगता है.
अब तक बैंकों में जमा हुए 500 और 1000 के नोट सरकार के इस दावे कि नोटबंदी से काला धन चलन से बाहर हो जाएगा को धता बताते हैं. दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया (जनवरी 5, 2017) की खबर के अनुसार कुल 15.44 लाख करोड़ मूल्य के अमान्य नोटों में से लगभग 97 प्रतिशत (14.97 लाख करोड़) नोट 30 दिसम्बर तक जमा करवाए जा चुके थे. ये आंकड़े दिखाते हैं कि सिर्फ 47 हजार करोड़ रुपये ही 30 दिसम्बर की आखिरी सीमा तक जमा नहीं हो सके थे. इन न जमा हो सकने वाले 500 और 1000 के नोटों में कितनी काली मुद्रा होगी, यह बता पाना मुश्किल है. अतः यह कहना कि सिर्फ नोटबंदी के फलस्वरूप काले धन पर विराम लगेगा, सही प्रतीत नहीं होता.
नोटबंदी का प्रभाव
आइये, एक नज़र नोटबंदी से आम जन-जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों की तरफ डालते हैं. सरकारी आकड़ों के अनुसार देश का लगभग 94 प्रतिशत रोजगार अनियमित क्षेत्र में है. अनियमित क्षेत्र में काम कर रहे कुल श्रमिकों में से 86 प्रतिशत श्रमिकों की मजदूरी का भुगतान नकद रुपयों में होता है. नोटबंदी के फलस्वरूप उपजे नोट अभाव के कारण इन सभी श्रमिकों की मजदूरी का भुगतान वक्त पर होने में कठिनाई देखी जा रही है. देश का कृषि क्षेत्र, जो कुल रोजगार का 50 प्रतिशत से अधिक रोजगार पैदा करता है, में लेन-देन नकद रुपयों में होते हैं. उदाहरण स्वरुप कृषि लागतें (जैसे खाद, बीज, सिंचाई, बुवाई और कटाई) हों या कृषि उत्पादों की विक्री का भुगतान, सब नकद रुपयों में ही होता है, पर नकदी की समस्या के कारण कृषि क्षेत्र में होने वाले इन सभी भुगतानों पर इसका नकारात्मक असर हुआ है. नोटबंदी और उसके फलस्वरू नकदी के अभाव के कारण किसान खाद और बीज खरीद पाने में असमर्थ हैं. इसी तरह खासकर उत्तर भारत में किसान धान की विक्री कर पाने में कठिनाइयाँ झेल रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि सरकारी धान क्रयकेन्द्रों के अभाव में किसान स्थानीय व्यापारियों को धान बेचते हैं जो अक्सर उन्हें नकद पैसे देते थे, पर अब नोटबंदी के फलस्वरूप नकदी अभाव के कारण किसान धान को, पहला, कम कीमत पर बेच रहे हैं और दूसरा, व्यापारी किसानों को नकद भुगतान न कर किसी भविष्य की तारीख पर भुगतान करने का आश्वाशन देकर धान खरीद रहे हैं. इस कारण खासकर छोटे किसानों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि ये किसान पिछली फसल की विक्री से मिले पैसे का इस्तेमाल आगे की उगाई जाने वाली फसलों की लागत और रोज-ब-रोज के दैनिक खर्चों को वहन करने के लिए करते हैं.
नकदी का अभाव सिर्फ कृषि को ही प्रभावित नहीं कर रहा है बल्कि ग्रामीण भारत में रोजगार का एक बड़ा हिस्सा जो गैर कृषि रोजगार के अंतर्गत आते हैं, जैसे लघु एवं कुटीर उद्योग, निर्माण क्षेत्र, स्वरोजगार, स्थानीय व्यापार और परिवहन, कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण और बाजार और हाट में मिलने वाले रोजगार, इत्यादि भी इस नोटबंदी के फलस्वरूप नकदी की समस्या से जूझ रहे हैं जिसके कारण इसमें काम कर रहे ग्रामीण मजदूरों को उनका पारिश्रमिक मिलने में कठिनाइयाँ आ रही हैं. नोटबंदी का प्रभाव सिर्फ ग्रामीण मजदूरों पर ही नहीं बल्कि शहरी क्षेत्र में काम कर रहे अनियमित क्षेत्र के मजदूरों खासकर निर्माण क्षेत्र में कार्यरत मद्जूरों पर भी पड़ा है. नकदी के अभाव की समस्या के कारण हजारों मजदूरों को या तो उनके रोजगार से हाथ धोना पड़ रहा है या उनकी मजदूरी का भुगतान उन्हें नहीं किया जा रहा है जिसके कारण इन मजदूरों को स्वतः अपना काम छोड़ अपने गावों की तरफ लौटना पड़ रहा है. इस तरह नकदी के अभाव के फलस्वरूप अनियमित क्षेत्र में रोजगार कि समस्या हुई है और मजदूरी के भुगतान न होने के फलस्वरूप लोगों की खरीद क्षमता में कमी आयी है, दूसरी तरफ बैंक खुद या एटीएम् द्वारा मुद्रा की पूर्ती करने में विफल रहे हैं जिसके कारण आर्थिक अस्थिरता या एक लम्बे समय तक आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ सकता है.
सरकार का यह कहना कि नोटबंदी से देश में ऑनलाइन या मोबाइल बैंकिंग को बढ़ावा मिलेगा, तथ्यपरक नहीं लगता. देश में लगभग 233 मिलियन लोगों के पास अपना कोई बैंक अकाउंट नहीं है और कुल बैंक अकाउंट के लगभग 43 प्रतिशत अकाउंट लगभग निष्क्रिय हैं अर्थात ऐसे खातों में कोई लेन-देन नहीं होता. ये निष्क्रिय पड़े खाते भारत के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले गरीब और निम्न मध्मय वर्गीय परिवारों के ही होंगे. इसी तरह प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत खुले 25 करोड़ बैंक खातों में से 23 प्रतिशत खातों में जीरो बैलेंस है.
इसी तरह सरकार के डिजिटल पेमेंट को प्रोत्साहन देने के सन्दर्भ में आकड़ों पर ध्यान दें तो पता चलता है कि देश के सिर्फ 35 प्रतिशत लोगों की पहुँच इन्टरनेट तक है. देश में कुल ऑनलाइन भुगतान का प्रतिशत कुल भुगतान के 2 प्रतिशत से भी कम है. इसी तरह देश के 28 प्रतिशत लोगों के पास मोबाइल की सुविधा नहीं है. ऑनलाइन भुगतान के लिए जरूरी एंड्राइड या इसी तरह के ऑपरेटिंग सिस्टम जिसके द्वारा मोबाइल ऑनलाइन बैंकिंग सुविधा प्राप्त होती है, देश में लगभग 80 प्रतिशत लोगों के पास इस तरह के ऑपरेटिंग सिस्टम वाले फ़ोन नहीं हैं. देश के लगभग 25 प्रतिशत लोग आज भी निरक्षर हैं, पर अगर हम डिजिटल साक्षरता की बात करें तो हमारा देश दुनिया के तमाम पिछड़े देशों में शुमार किया जाता है. वर्ल्ड इकनोमिक फोरम (2016) की रिपोर्ट के अनुसार नेटवर्क रेडीनेस इंडेक्स, जो डिजिटल लिटरेसी और उससे जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर का वैश्विक इंडेक्स है, में कुल 139 देशों में भारत का स्थान 91वा है. उपर्युक्त आंकड़े दर्शाते हैं कि सिर्फ नोटबंदी से देश ऑनलाइन पेमेंट की तरफ अग्रसर नहीं होगा, उसके लिए जरूरी है कि भारत सरकार अधिक से अधिक रोजगार के अवसर प्रदान करे और साथ ही डिजिटल पेमेंट के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर और डिजिटल लिटरेसी को बढ़ावा दे.
निष्कर्ष
नोटबंदी जिसके फलस्वरूप 86 प्रतिशत मूल्य के नोट जो यह कहकर चलन से बाहर कर दिए गए कि इससे काले धन, भ्रष्ट्राचार, नकली नोट, आतंकवाद, नक्सलवाद और ड्रग्स की समस्या से निजात मिलेगी, सही प्रतीत नहीं होता. निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि, पहला, अर्थव्यवस्था में काली मुद्रा, जो कि एक फ्लो है, को रोक पाना तब तक असंभव है जब तक कि इसके जन्म होने के श्रोतों पर रोक न लगाई जाय. दूसरा, सरकार खुद यह स्वीकार करती है कि उच्च मूल्य के करेंसी नोटों में बहुत कम काली मुद्रा है और नकली मुद्रा उससे भी कम है, इसके बावजूद सरकार का नोटबंदी का यह कदम कई अनसुलझे सवालों को जन्म देता है. तीसरा, नोटबंदी को पूर्णरूप से लागू करने के लिए सरकार और आरबीआई की तैयारियां न के बराबर थीं जिसके कारण लोगों को बैंकों और एटीएम के सामने घंटों और कई दिनों तक कतार में खड़े रहना पड़ा जिसके कारण बहुमूल्य श्रम घंटों कि हानि हुई. इसीप्रकार आरबीआई और सरकार के बदलते नियमों और बयानों के कारण भी आम-जन को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. चौथा, नोटबंदी के कारण अनियमित क्षेत्र के अंतर्गत काम करने वाले ग्रामीण और शहरी कामगारों को नकदी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है जिसके कारण रोजगार में बने रहने और मजदूरी भुगतान कि समस्या पैदा हुई है, और पांचवां, सरकार का ये दावा कि नोटबंदी से देश ऑनलाइन बैंकिंग की तरफ प्रोत्साहित होगा सही नहीं है क्योंकि इसके लिए आवश्यक मूलभूत सुविधाएँ और ऑनलाइन पेमेंट के लिए डिजिटल लिटरेसी, बैंक अकाउंट और साथ ही रोजगार का विस्तार होना भी आवश्यक है.
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें