आलोक वर्मा
भारतीय जीवन दर्शन में आत्महत्या को जिंदगी से पलायन
माना गया है। शायद यही कारण है कि आत्महत्या के मामले अक्सर सहानुभूति का कारण
नहीं बनते। युवाओं की अकाल मौत कभी-कभी अनजान लोगों को भी द्रवित कर देती है।
जिंदगी से संघर्ष करते-करते कोई चला जाए तो सहज ही उसके लिए दुख होता है। लेकिन
आत्महत्या करने वाले को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता। माल्ट्स बर्गर के अनुसार- ‘ यह पता लगाना चाहिए कि कोई व्यक्ति किस लिए जीता है।
अधिकांश व्यक्ति सभी तरह की बातों के लिए
जीते हैं। यदि जीवन में उन्हें कोई एक चीज नहीं मिल पाती तो वे कोई और वस्तु ले
लेते हैं। किंतु आत्महत्या की प्रवृत्ति वाले मनुष्यों में अपने आंतरिक साधनों के
बल पर दुनिया में रहने की क्षमता नहीं होती।‘ आत्महत्या
कायरता है, जीवन से, जिम्मेदारियों से पलायन है। यह जानते हुए भी आत्मघात की
प्रवृत्ति बढ़ी है और न सिर्फ किसानों, मजदूरों और अशिक्षितों में बढ़ी है बल्कि
पढ़े लिखे वर्ग और मुश्किलों और कठिनाइयों के झंझावातों का सामना करने वाले जवानों
में आत्महत्या की घटनाएं बढ़ी हैं।
पिछले दिनों दिल्ली में
राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) के एक कमांडो धर्मेंद्र सिंह रावत ने अपनी सरकारी
एके 47 राइफल से गोली मारकर आत्महत्या कर ली। उससे पहले सीआईएसएफ के एक जवान ने अपने साथी को घायल
कर फिर गोली मारकर आत्महत्या कर ली। इसी बल के एक अन्य जवान ने मई माह में उद्योग
भवन में आत्महत्या कर ली, जबकि तुर्की दूतावास के सामने नगालैंड पुलिस के जवान ने
आत्महत्या कर लिया। इस वर्ष अब तक सात सुरक्षा सैनिक आत्महत्या कर चुके हैं। वैसे
तो समाज में ऐसी घटनाओं को लेकर संवेदनशीलता की स्थिति है। ऐसे मामलों को लेकर जो
उद्वेलन और प्रतिक्रिया होनी चाहिए, दिखाई नहीं देती। सुरक्षा सैनिकों में
आत्महत्या की प्रवृत्ति क्यों बढ़ रही है, इसका विश्लेषण जरूरी है। एनएसजी के
कमांडो की आत्महत्या का मामला लें, उसके विभागीय अधिकारियों ने यह मानने से इनकार
कर दिया कि उसने काम के बोझ के मानसिक दबाव में आत्महत्या कर ली। एनएसजी के
महानिदेशक आर.एम. मुशहरी ने साफ कहा कि वह धर्मेंद्र की आत्महत्या के लिए
प्रोफेशनल तनाव को कारण नहीं मानते। उनके अनुसार अधिकांश समय ऐसी घटनाएं व्यक्तिगत
समस्याओं के चलते घटती हैं। वे कहते हैं कि जवान ने घरेलू परेशानियों के चलते
आत्महत्या की।
सुरक्षा सैनिकों के मनोविज्ञान
का अध्ययन करने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि अर्द्धसैनिक बल सबसे अधिक तनाव में
रहते हैं। चिंता का कारण यह है कि उनके कंधों पर देश की सुरक्षा की सबसे अधिक
जिम्मेदारी होती है। अर्द्धसैनिक बलों की प्रचलित कार्यपद्धति भी उनके तनाव बढ़ाने
के कारण के रूप में चिह्नित की जा सकती है। जहां तक सुरक्षा का सवाल है, छोटी सी
भूल करने से भी सैनिक डरता है। कोई जवान यदि सेना के नियमों का उल्लंघन करता है तो
वह अपने लिए भयंकर तनाव को निमंत्रण दे रहा होता है। इस मामले में डा. जितेंद्र
नागपाल का कहना है कि किसी उचित फोरम के अभाव में सीनियर और जूनियर के बीच मतभेद
बढ़ते जाते हैं और वे जवान को आत्महत्या के रास्ते पर ले जाते हैं। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि स्टाफ की कमी, कम
वेतन, थोड़ी छुट्टियां और घंटों की लगातार ड्यूटी ऐसे कुछ कारण हैं जो जवानों में
अफसरों के प्रति भयंकर घृणा पैदा करते हैं। दिल्ली की ही बात लें- आंकड़ों के
मुताबिक वहां 360 लोगों को सुरक्षा मुहैया करायी जाती है। वर्तमान में 6700 जवानों
को वीआईपी सुरक्षा में लगाया गया है। जवानों की दिक्कतें कम करने के लिए सीआईएसएफ
ने उनकी ड्यूटी दो-दो घंटे की चार शिफ्टों में कर दी है। हाल ही में प्रकाशित एक
रिपोर्ट के मुताबिक हरियाणा जैसे छोटे राज्य में हर माह औसतन 150 लोग आत्महत्या
करते हैं। जबकि हरियाणा देश के समृद्ध राज्यों में से एक है। इसी तरह पश्चिम बंगाल
में पिछले साल आत्महत्या के 609 मामले दर्ज हुए जबकि 2001 में सिर्फ 395 मामले
दर्ज किए गए थे। पूरे देश के आत्महत्याओं के आंकड़े पर नजर डालें तो दिल दहला देने
वाली तस्वीर सामने आती है। भारत में हर साल लगभग 46 हजार लोग आत्महत्या करते हैं।
दूसरे रूप में कहें तो हर 12 मिनट में देश के किसी हिस्से में कोई मौत को गले लगा
लेता है। आत्मघात के मामले में यदि भारत की दर 12 मिनट के अंतराल की है तो दुनिया
में सिमट कर 80 सेकेंड तक पहुंच जाती है
अर्थात विश्व में प्रतिदिन 1100 लोग स्वयं मृत्यु का वरण करते हैं।
आत्महत्या करने के पीछे एक
विशिष्ट मानसिकता होती है। कभी कभी ऐसा भी होता है कि क्षणिक आवेश में व्यक्ति ऐसा
कदम उठा लेता है। समाजशास्त्रियों का मानना है कि ऐसी स्थिति में यदि उस व्यक्ति
को उस विचार से मुक्त करा दिया जाए तो उसके मन से आत्महत्या का विचार सदा के लिए
निकल जाता है।
हमारे देश में आत्महत्याओं
का कारण प्यार में असफल होना, शारीरिक बीमारी या आर्थिक कठिनाई ही होता है।
असफलताओं की खबरें, कल की चिंता और भविष्य का तनाव खुदकुशी की ओर ले जाने के कारण
बनते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में आत्महत्या का कारण 32 फीसदी मामलों में
बीमारी तथा 12 प्रतिशत में प्रेम की असफलता है। अहंकार को लगी ठेस भी आत्महत्या का
कारण बनते हैं।
क्या आत्महत्या के कारणों
को लेकर कोई सिद्धांत निश्चित किया जा सकता है? पहले डाक्टर कहा करते थे कि अवसाद आत्महत्या का कारण होता
है। लेकिन वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि लोग अवसाद की स्थिति खत्म हो जाने के
बाद भी आत्महत्या कर लेते हैं। जीव विज्ञानियों का कहना है कि मस्तिष्क में
रासायनिक असंतुलन पैदा होने पर आत्महत्या की घटना होती है। समाजशास्त्री पारिवारिक
विघटन को आत्महत्या का कारण मानते हैं। धर्मगुरुओं का कहना है कि आस्था खत्म होने
पर लोग आत्महत्या कर लेते हैं। लेकिन सच यह है कि जिन कारणों से भी आत्महत्या की
जाए उऩको लेकर सिद्धांत निश्चित नहीं किया जा सकता।
अब तो आत्महत्या के मामलों
का विश्लेषण करके भविष्यवाणी की जाने लगी है। इसके कुछ निष्कर्ष काफी रोचक हैं।
महिलाएं आत्महत्या का प्रयत्न अधिक करती हैं लेकिन स्त्रियों की तुलना में पुरुष
आत्महत्या अधिक करते हैं। गोरे लोग अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक आत्महत्या करते
हैं। आत्महत्या करने वालों में अधिकांश बूढ़े होते हैं। मनोवैज्ञानिक श्नाइड मान का कहना था कि अधिकांश
लोग बातचीत के दौरान आत्महत्या करने की इच्छा के संकेत दे देते हैं। स्टैनफोर्ड
विश्वविद्यालय के मनोचिकित्सक पाल वाल्टस जूनियर का विश्वास है कि विचारों के
अस्त-व्यस्त हो जाने के कारण प्रायः लोग आत्महतिया करते हैं न कि अवसाद के कारण।
(यह लेख
दैनिक ट्रिब्यून के 16 अक्तूबर 2003 के अंक में प्रकाशित हुआ था।)
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें