आलोक वर्मा संस्मरण के दायरे में क्या आना चाहिए ? आखिर संस्मरण लिखा जाए तो उनमें किन बातों का उल्लेख किया जाना चाहिए ? क्या संस्मरण के नाम पर सिर्फ कीचड़ उछालने का काम किया जाना चाहिए ? क्या सिर्फ पुराना हिसाब चुकता करने के लिए संस्मरण लिखा जाना चाहिए ? क्या उसमें तत्कालीन विसंगतियों, चुनौतियों, संघर्षों तथा उनका मुकाबला करने वालों के योगदान को नकार कर सिर्फ अपनी यशोगाथा दूसरे की निंदा ही संस्मरण लिखने का मूल उद्देश्य होना चाहिए ? डा. शुकदेव सिंह के संस्मरण की पुस्तक ‘ सब जग जलता देखिया ’ को पढ़ते समय ये कुछ प्रश्न सहज मन में उठते हैं। सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक पहलू को अगर नजरअंदाज भी कर दें तो कम से कम साहित्यिक दुनिया और वातावरण का खाका तो खींचा ही जाना चाहिए ताकि अगली पीढ़ी को भूतकाल से वर्तमान का आंकलन करन में सहूलियत हो। वैसे सच तो यह है कि अगर हम राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक वातावरण का विवेचन नहीं करेंगे तो साहित्य के साथ न्याय नहीं कर पाएंगे। फिर उसका हश्र वही होगा जो शुकदेव सिंह की पुस्तक ’ सब जग जलता देखिया ’ का हुआ है। वह पुस्तक एक पक्षीय बयानबाजी भर...